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: भारत में आखिर क्यों हो गई कोयले की कमी, हम सब पर इसका क्या होगा असर? जानें इस संकट का कारण

Admin

Sun, Oct 10, 2021

भारत (B.N.E) इस वक्त कोयले की भारी कमी (India Coal Shortage) का सामना कर रहा है। थर्मल पावर प्लांट्स में कोयले का स्टॉक केवल कुछ दिनों के ईंधन की सप्लाई ही कर सकता है। केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने कहा है कि स्थिति "टच एंड गो" वाली है और छह महीने तक "मुश्किल" हो सकती है। ऐसा देश जहां 70% बिजली कोयले का इस्तेमाल करके पैदा होती है, उसके लिए ये एक चिंता का एक अहम कारण है, क्योंकि इससे महामारी के बाद आर्थिक सुधारों के पटरी से उतरने का खतरा है। ऐसा क्यों हो रहा है? ये संकट महीनों से बना हुआ है। दरअसल Covid-19 की दूसरी घातक लहर के बाद जैसे ही भारत की अर्थव्यवस्था में तेजी आई, ठीक उसी रफ्तार से बिजली की मांग भी बढ़ी। 2019 में इसी अवधि की तुलना में अकेले पिछले दो महीनों में बिजली की खपत में लगभग 17% की बढ़ोतरी हुई है। इसके साथ ही वैश्विक कोयले की कीमतों में 40% की तेजी आई और भारत का इंपोर्ट दो साल के निचले स्तर पर आ गया। दुनिया में चौथा सबसे बड़ा कोयला भंडार होने के बावजूद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोयला इंपोर्टर है। पावर प्लांट्स, जो आमतौर पर इंपोर्ट पर निर्भर होते हैं, अब वे भारतीय कोयले पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं, जिससे पहले से ही घरेलू सप्लाई पर और दबाव बढ़ रहा है। क्या होगा इसका प्रभाव? विशेषज्ञों का कहना है कि घरेलू कमी को पूरा करने के लिए ज्यादा कोयले एक्सपोर्ट करना, फिलहाल तो कोई ऑप्शन नहीं है। नोमुरा में इंडिया इकोनॉमिस्ट और वाइस प्रेसिडेंट डॉ. औरोदीप नंदी ने कहा, "हमने अतीत में भी ऐसी कमी देखी है, लेकिन इस बार गंभीर बात ये है कि कोयला वास्तव में महंगा है।" उन्होंने समझाया, "अगर मैं, एक कंपनी के रूप में महंगा कोयला इंपोर्ट कर रहा हूं, तो मैं अपनी कीमतें बढ़ाऊंगा, है ना? और आखिर में इन लागतों को बोझ कंज्यूमर पर डलता है, इसलिए दाम बढ़ने का असर पड़ता है।" अगर संकट जारी रहता है, तो उपभोक्ताओं को बिजली की लागत में बढ़ोतरी का सामना करना होगा। खुदरा महंगाई पहले से ही हाई है, क्योंकि तेल से लेकर खाने-पीने तक सब कुछ महंगा हो गया है। हाल के कुछ सालों में, भारत का प्रोडक्शन पिछड़ गया है, क्योंकि देश ने जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए कोयले पर अपनी निर्भरता को कम करने की कोशिश की है। भारत के ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने अखबार के साथ एक इंटरव्यू में कहा कि स्थिति "टच एंड गो" है और देश को अगले पांच से छह महीनों के लिए खुद को तैयार करना चाहिए। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि स्थिति "चिंताजनक" है। अगर स्थिति ऐसी ही रहती है, तो एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था पटरी पर आने के लिए संघर्ष करेगी, कोल इंडिया लिमिटेड (Coal India Limited) की पूर्व प्रमुख सुश्री ज़ोहरा चटर्जी ने चेतावनी दी है, इलेक्ट्रिसिटी ही सारी पावर देती है, इसलिए पूरा मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर- सीमेंट, स्टील, कंस्ट्रक्शन - कोयले की कमी होने से सब कुछ प्रभावित हो जाता है। चटर्जी मौजूदा स्थिति को "भारत के लिए एक वेक अप कॉल" बताती हैं और कहती हैं कि समय आ गया है कि कोयले पर निर्भरता को कम किया जाए और रिन्यूएबल एनर्जी स्ट्रेटजी को और ज्यादा तेजी से आगे बढ़ाया जाए। राज्यों पर दिखने लगा असर कोयले की इस कमी का असर अब धीरे-धीरे दिखने भी लगा है। राजधानी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शनिवार को राजधानी के बिजली प्लांट्स में कोयले की कमी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी है। केजरीवाल ने राजधानी में बिजली संकट की समस्या के समाधान के निदान के लिए प्रधानमंत्री से इस मामले में व्यक्तिगत हस्तक्षेप करने की अपील की है। वहीं पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने भी केंद्र सरकार से बिजली संकट से निपटने के लिए कोटा के अनुसार राज्य की कोयले की सप्लाई को तुरंत बढ़ाने के लिए कहा, क्योंकि इसके थर्मल प्लांट तेजी से घटते कोयले के भंडार के कारण बंद हो गए हैं। इतना ही नहीं पंजाब स्टेट पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड ने अपील की कि देश में कोयले की भारी कमी है, इसलिए वो अपने ग्राहकों से अपील करता है कि "जरूरत न होने पर लाइट, डिवाइस और एयर कंडीशनर बंद करके बिजली की बचत करें।" क्या कर सकती है सरकार? भारत अपने लगभग 1.4 बिलियन लोगों की बिजली की मांग को पूरा करने और बहुत ज्यादा प्रदूषणकारी कोयला जलाने वाले बिजली प्लांट पर अपनी निर्भरता में कटौती करने की इच्छा के बीच संतुलन कैसे बना सकता है? ये सवाल हाल के सालों में सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती रहा है। डॉ. नंदी ने कहा, "हमारी एनर्जी का एक बड़ा हिस्सा थर्मल (कोयला) से आता है। मुझे नहीं लगता कि हम अभी तक उस स्तर पर पहुंचे हैं, जहां हमारे पास थर्मल का कोई एक प्रभावी ऑप्शन है। हां, ये एक चेतावनी है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि हमारी ऊर्जा जरूरतों में कोयले की अहम भूमिका को जल्द ही किसी दूसरे ऑप्शन से बदला जा सकता है।" विशेषज्ञ संभावित लॉन्ग टर्म समाधान के रूप में कोयले और एनर्जी के क्लीन सोर्स के मिक्स की वकालत करते हैं। डॉ. जैन कहते हैं, "एकदम से सब कुछ बदलना पूरी तरह से संभव नहीं है और बैकअप के बिना 100 फीसदी रिन्यूएबल एनर्जी में बदलना कभी भी एक अच्छी रणनीति नहीं है।" उन्होंने आगे कहा, "आप केवल तभी इस तरह के बदलाव कर सकते हैं, जब आपके पास वो बैकअप उपलब्ध हो।" चटर्जी जैसी पूर्व नौकरशाहों का कहना है कि कई पावर सोर्स में लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट के अलावा, मौजूदा संकट जैसे संकट को बेहतर योजना के साथ टाला जा सकता है। उन्हें लगता है कि कोल इंडिया लिमिटेड, जो देश में कोयले की सबसे बड़ी सप्लायर है। उसके और दूसरे स्टेक होल्डर्स के बीच बेहतर समन्वय की जरूरत है। क्या हो सकता है आगे? ये तो साफ नहीं है कि मौजूदा स्थिति कब तक रहेगी, लेकिन डॉ. नंदी आशावादी हैं। वे कहते हैं, "मानसून के निकलने और सर्दी के आने के साथ बिजली की मांग आमतौर पर गिर जाती है। इसलिए, डिमांड और सप्लाई के बीच बेमेल कुछ हद तक खत्म हो सकता है।" विवेक जैन कहते हैं, "ये एक वैश्विक घटना है, जो विशेष रूप से भारत तक ही सीमित नहीं है। अगर आज गैस की कीमतों में गिरावट आती है, तो गैस पर वापस स्विच हो सकता है। ये एक गतिशील स्थिति है।" अभी के लिए, भारत सरकार ने कहा है कि वो सप्लाई और डिमांड के बीच के अंतर को कम करने के लिए प्रोडक्शन और माइनिंग को बढ़ाने के लिए राज्य द्वारा संचालित एंटरप्राइजेज के साथ काम कर रही है। सरकार तथाकथित "कैप्टिव" माइंस से कोयले के सोर्स की भी उम्मीद कर रही है। कैप्टिव माइंस वे ऑपरेशन हैं, जो केवल उस कंपनी के लिए कोयले या खनिजों का प्रोडक्शन करते हैं, जो उनका मालिक है और सामान्य परिस्थितियों में वे जो प्रोडक्शन करते हैं, उसे दूसरे बिजनेस को बेचने की अनुमति नहीं है। विशेषज्ञों का यही मानना है कि शॉर्ट टर्म सुधार भारत को वर्तमान ऊर्जा संकट से निकलने में मदद कर तो सकते हैं, लेकिन देश को अपनी बढ़ती घरेलू बिजली जरूरतों को पूरा करने के लिए लॉन्ग टर्म विकल्पों की दिशा में काम करने की जरूरत है।

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